Wednesday, November 18, 2009

|| अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणाम् ||


एक पेड़ होने का -- एक पीपल के पेड़ होने का -- अहसास कैसा होगा,
दिनभर कड़ी धूप सहने के बाद रात में तारों का साथ कैसा होगा.

जीने के लिए -- जल पीने के लिए -- जड़ें गहरी पैठाने का अभ्यास कैसा होगा,
फिर उन्ही जड़ों से -- कहीं दूर -- एक अनजान देश में उग आने का आयास कैसा होगा.

किसी दिन अपने बाजुओं में मैना के घोसलों को सम्भालने की ख़ुशी कैसी होगी;
कभी उन्ही घोसलों से गिरते हुए एक बच्चे को न बचा पाने पर उच्छ्वास कैसा होगा.

किसी गुलेल से निकले पत्थर की चोट खाकर चीख न पाने की बेबसी कैसी होगी;
कभी सुहागिनों द्वारा बाँधे जाने पर "मैं कहाँ भागा जाता हूँ" का अट्ठाहास कैसा होगा.